किसने किसको मार दिया
ये सोच के थम जाता क्या
दर्द महसूस जो करता तो
सत्ता तक जा पाता क्या?
बंदर बिल्लियों से सयाना है
किसको कितना पाना है
जो ये गणित भिड़ा पाता
सारा चट कर पाता क्या?
मरने के क़ाबिल था या
सत्ता के मुकाबिल था
बात ग़र एक नहीं होती तो
बूढ़ा यों मर जाता क्या?
देह वो जल कर भस्म हुई
विचार सीने से बह निकले
क़ातिल आज भी पूछ रहा
कोई गांधी बनने आता क्या?
ये चुप्पी बहुत जानलेवा है
उसको भी था मालूम मगर
जो गूँगों को बतला देता तो
लोकतंत्र बच पाता क्या?
सियासी कुरूक्षेत्र में किसे
गंगापुत्र समझ के घेरते हो
शिखंडी पाला बदल गये
नहीं समझ में आता क्या?
बोलेगा जो भी वही मरेगा
निरंकुशता ये कहती है
ख़ामोशी से ज़म्हूरियत का
नाम न बदला जाता क्या?
हमने जिन्हें था चुन लिया
अब वो ही हमको चुन देंगे
सवाल आख़िरी यही होगा
तुमको चुनना आता क्या?
क्या !

