जाँच अफसर जेल में कैदी से,
‘देख भाई, ये शराफ़त का ज़माना नहीं है, तू लाख सिर पटक ले लेकिन यहाँ इन सलाखों के पीछे तेरी चीखें दब कर रह जाएंगी…’
‘.. क्या पड़ी थी तुझे इत्ते बड़े गैंग से पंगा लेने की। तूने क्या समाजसेवा का ठेका लिया है? जानता है तू जिनके लिये लड़ रहा है वो बाहर धर्म की बहती धारा में नारा लगाते हुए कूद पड़े हैं। जिसने पूँछ पकड़ ली समझो वो पार लग गया। जो नहीं माना वो तेरी तरह मझधार में अपने अच्छे दिनों को कोस रहा है। लेकिन अब उपाय ही क्या है बता?’
‘अच्छा चल, समाजसेवा ही करनी है ना तूने तो चल एनजीओ ही खुलवा देते हैं तेरा..’
‘फंडिंग भी करा देंगे और क्या चाहिये…’
‘अरे वो कहते हैं ना, “बड़े भाग मानुष तन पाये, जनहित में क्यों जान जलाये।”…हा हा हा, सही बोला ना मैं।’
‘वैसे असली ऑफर भी है तेरे लिये.. एकदम सियासी ऑफर, सरकार ने आजकल एक वाशिंग पाउडर निकाला है नया अपने ही नाम से। इसकी सफेदी में इतनी चमकार है कि बड़े बड़े दाग़ी साफ सुथरे हो कर धूप में सूख रहे हैं। कल तक जो सरकार विरोधी नारे लगा रहे थे आज वो चुपचाप लगाम का स्वाद चख रहे हैं। तू भी चख ले और नहा धो कर ऐश कर। समझ रहा है ना। तेरे जैसे लोगों की बहुत ज़रूरत है सरकार को। तेरे पर तो वाशिंग पाउडर बर्बाद करने की ज़रुरत भी नहीं पड़ेगी। बल्कि तुझ जैसे लोग तो खुद वाशिंग पाउडर बन कर सरकार की इमेज चमका सकते हैं। सोच क्या रहा है? मान गया तो मंत्री बनेगा और नहीं माना तो इतने मुक़दमे लगा कर ठूँस दूँगा कि आज़ादी का नाम लेना भूल जाएगा।’
‘हवलदार, जरा इसके बचे खुचे कस बल निकालना तो जरा, पता नहीं किस मिट्टी का बना है। या तो इसकी मिट्टी ख़राब है या हमारी। अभी तक घूर रहा है स्स्स्साला।’
(डिस्क्लेमर- उपरोक्त फ़िल्मी सीन का किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। साथ़ में लगी ख़बर/तस्वीर से तो बिल्कुल भी नहीं।)