• Sat. Jul 27th, 2024

सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

अनूठी क्रांति!

Byआज़ाद

Jan 22, 2020

कौन कहता है इंसान को
लट्टू की तरह नचाया नहीं जा सकता
खुद नाचना चाहो तो
नाच सकते हो
बेशक नाचो
नफ़रत की बीन पर
लेकिन
राम को विश्वास है रहीम के
यक़ीन पर
वो जो कह रहे हैं
सुनो अगर दर्द को भांप सकते हो
हमारे पुरखे हैं
यहाँ की आज़ाद हवाओं मे
या फिर
दो गज़ ज़मीन में हैं दफ़न
तुमको शक़ हो तो
हमारे लहू से
हमारे देश का डीएनए
जांच सकते हो

वो जानते हैं
इतिहास के पन्नों पर
अब तक
उपेक्षित पड़ा एक काला धब्बा
अपने
वजूद को फैला कर
बदल देना चाहता है
आज़ादी और ज़म्हूरियत
के लिये
पीढ़ियों की कुर्बानियों को
दादा दादी और
नाना नानी की सच्ची कहानियों को
हमारे विश्वासों, विरासतों को
धरोहरों को
एक बड़े काले धब्बे में
ताकि उसका स्याह वजूद ग़ुम हो जाये
और फिर
उन्हीं काले पन्नों पर
हमारे ही खून से
तुम्हारा वहशी निजाम
हमारे भविष्य का अँधेरा लिख पाये

हैरान हो न तुम
कि नतीजा वो नहीं निकला
जो
हमारे कंधे पर बंदूक रख कर
निकालना चाहते थे तुम
क्या हुआ?
निकल पड़ा सैलाब
और बिखेर गया तुम्हारे अरमानों पर पानी
शाहीन बाग़ ने याद दिला दी
दादी नानी
सत्ता के अहंकार ने फैलानी चाही थी
सब चंगा है की भ्रांति
अब देखो
गली गली परसती
ये सत्याग्रह की शांति
वक़्त की रेत पर
ख़ामोशी से लिख रही है
एक अनूठी क्रांति!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *