• Thu. Apr 18th, 2024

सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

मुर्दे की बात, मुर्दों के साथ!

Byआज़ाद

Nov 8, 2022

 

सबसे पहले तो आज के दिन 1000, 500 के नोटों की पुण्यतिथि पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। उन मृतात्माओं को भी नमन जो इस कड़े और बड़े फैसले के अचानक स्खलन से उसकी जद में आकर शहीद हो गये। आज वो जहाँ भी होंगे, गर्व से देख रहे होंगे कि उनकी शहादत क्या रंग लायी है।

चिप वाले 2000 और 500 के नोटों को भी जन्मदिन की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ। वो जहाँ भी रहें, सुरक्षित रहें।

इन बीते सालों में हमें ये समझ आ गया कि मात्र दो नोटों और कुछ इंसानों की शहादत के ज़रिये देशवासी एक ऐसे ऐतिहासिक फैसले के गवाह बने थे जिसने देश के विकास को एक अलग ही रफ़्तार दी।

आम जनता की छोटी मोटी बचत राशि देश हित के लिये कुर्बानी देकर अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में शामिल हो गयी। ‘न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी’ की तर्ज पर इससे कैश लेस इकनॉमी को बढ़ावा मिला। आज हमारी इकनॉमी पूरी तरह से स्वदेशी हो चुकी है और शीर्षासन कर नयी ऊंचाइयां छू रही है।

एंटायर पॉलिटिकल साइंस के एक मास्टर ने अपनी छड़ी के एक स्ट्रोक से आतंकवाद की कमर तोड़ दी। वो आज तक दर्द से कराह रहा है जिसकी गूँज अक्सर वादियों में सुनाई दे जाती है।

भ्रष्टाचार का मुँह काला हुआ तो उसे अपने सफेद कपड़े बदल कर सूट बूट में आना पड़ा। काला धन भी पड़ोसी देशों की तरह थर थर काँपने लगा। आखिरकार सर्जिकल स्ट्राइक से घबरा के उसे अपना नाम बदल कर हूकेयर्स फण्ड रख देना पड़ा।

सबसे बड़ी कामयाबी ये रही कि 1000 को 2000 करने से एक ही सूट-कैश में दोगुनी रकम आने लगी। इससे लेन-देन आसान हो गया और मुद्रा (लो न) का प्रवाह बढ़ा।

इतना ही नहीं, ‘न खायेंगे और न खाने देंगे’ वाली शपथ का बाद का आधा हिस्सा पूरी ईमानदारी से लागू किया गया। लोगों से खाना छीन कर उन्हें खाते दिये गये। इस तरह आम लोगों की घरेलू अर्थव्यवस्था कच्छे की तरह खुल गयी। इससे सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और खुलेपन को बढ़ावा मिला है।

‘नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या’ जैसे सत्य कथन से प्रेरित होकर करोड़ों बेरोज़गार युवाओं को चड्डी बचाओ अभियान के तहत रोजगार दिया गया। साथ मेें उन्हें मुफ़्त डाटा दिया गया ताकि वो भट्सैप यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकें। एक हाथ से कच्छा संभाले और दूसरे हाथ में मोबाइल पकड़े युवा यही तो नये भारत की तस्वीर है।

ये सब और इससे भी ज़्यादा लाभ केवल एक वोट देकर मिले तो कोई वो क्यूँ ले, ये न ले। ऐसी सोच ने आज देश के नौजवानों को भक्ति के एक सूत्र में बाँध लिया है। मुझे पूरा भरोसा है कि ऐसे ऐतिहासिक फ़ैसलों की बदौलत आगे भी हमें जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे ही चमत्कारी परिणामों से दो चार होना पड़ सकता है।

मुर्दे की बात ये है कि तुरत फुरत किसी विद्वान की आलोचना करना ठीक नहीं है क्योंकि हर बड़े और कड़े फ़ैसले के पीछे एक दूर की सोच होती है। कई बार तो खुद फ़ैसला लेने वाले को ही वो सोच दिखाई नहीं देती। इसलिए उसके इच्छानुसार नतीजे आने में भी वक़्त तो लगता है। आप ही सोचिए कि नया घर बनाने के लिए पुराने घर को आग लगाना कितने साहस का काम है। वो भी तब जबकि आप के पास नया घर बनाने के लिए पैसे तक न हों। इसीलिए भक्ति की मशाल थाम कर मेरे साथ जोर से बोलिए,

“हम सब को है नये घर की दरकार
कर रहे हैं पूरी बर्बादी का इंतज़ार
देखने को अभी और भी चमत्कार
बार बार हर बार चाहिये यही सरकार!”

@भूपेश पन्त

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *