दिखना चाहता था वो गाँधी सा फ़क़ीर
इसीलिए हर रोज़ उसे सजाया संवारा गया!
पहने थे उसने भी दस लाख के कपड़े
लेकिन जब ज़मीर उस के हाथों मारा गया!
कहता था कि मैं ही मुस्तकबिल हूँ मितरो
वो हिटलर भी किस तरह जाँ से बेचारा गया!
वहशत के दौर में ये भी मुमकिन है देखो
कि जो माना नहीं वो दुनिया से सिधारा गया!
जो करता रहा दिन रात ब्रह्मचर्य की बात
कौन कहता है कि इस जहाँ से कुँवारा गया!
सुन लोगे जिस दिन तुम देश की बात
बस उसी दिन से समझो मेरा तुम्हारा गया!
भेड़ों की भीड़ में एक भेड़िया भी था
तभी तो भेड़ के हाथों भेड़ को मारा गया!
गले में थे व्यवस्था के पंजे के निशान
किसान जब फाँसी के फंदे से उतारा गया!
अँग्रेजी हुकूमत के मुखबिरों की शान में
नाम उसका ही बदल बदल के पुकारा गया!
वीर का तीर लेना क्या पहले कम था
बुलबुल बुलाने जो बदनसीब दोबारा गया!
अदालतें कभी-कभी राहत भी दे सकें
सियासी हालात को इस तरह सुधारा गया!
जिसे कहते थे अक्सर नुक्ता ए नज़र
नए दौर में गद्दारी बता कर उसे मारा गया!
तय होने लगी विपक्ष की ज़वाबदेही
दुश्मन की तरह विरोधी को ललकारा गया!
लड़ रहे हैं रोज़ाना सब एक नयी जंग
चुनाव को जब से युद्घ सा जीता हारा गया!
जैसे फ़िसल जाती है मुट्ठी भर रेत
कुछ इसी तरह से लोक तंत्र हमारा गया!
@भूपेश पन्त
लोकतंत्र हमारा गया !

