जिस दिन एक दाढ़ी वाले बंदे ने कहा कि देश में पहली बार ऐसा पीएम बना है जो 1947 के बाद पैदा हुआ, जो पैंतीस साल तक केवल भीख माँगता रहा और जिसकी पीढ़ी का आज़ादी के किसी आंदोलन से कोई लेनदेना नहीं है तो मुझे लग गया था कि भीख में मिली आज़ादी इस बंदे ने विरोध करके भीख में गुजारी और देश को इसी ने 2014 में आजाद कराया। तभी से तो मुझे और मेरे जैसे करोड़ों सच्चे देशभक्तों को किसी को भी गाली देने की, ऊलजलूल बकने की, अकेले हनीमून मनाने की, कमलश्री जैसा इनाम झटकने की और सबसे बड़ी बात कि पागलखाने से आज़ादी मिली। अब हम धीरे धीरे अपने कारनामों से देश की गद्दार, समझदार और ग़रीब जनता को पागल बना कर उसी में ठूँस देंगे।
मुझे पता है कि कई लोग मेरी इस आज़ादी से चिढ़ते हैं कि ये मेंढकी की तरह कहीं भी बक देती है, कुछ भी पहन लेती है या नहीं भी पहनती। अरे यही तो आज़ादी है जो मुझे पहले नहीं थी। सब जगह नेपोटिज्म था और लोग मुझे रोल देने से पहले गोद लेना चाहते थे। इतने सारे परिवारों की गोद में बैठने के ऑफर्स से मुझे तब आज़ादी मिली जब मैं मीडिया की तरह एक स्वयंसेवी परिवार की गोद में जा बैठी। यहाँ कुछ बाबाओं को छोड़कर हम सब पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं।
जहाँ तक देश को आज़ाद कराने के लिए लड़ाई लड़ने की बात है तो वो मैंने भी लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा मेरा मतलब है घोड़े पर बैठ कर लड़ी थी। आसपास के सारे लोग झांसे की रानी कह कह कर मेरा हौसला भी बढ़ा रहे थे। लेकिन अंग्रेजों के विरुद्ध उस लड़ाई में मुझे तो कोई तकलीफ़ नहीं हुई। मेरी पीठ पर बंधा बच्चा तो एक बार भी दूध के लिए नहीं रोया। अलबत्ता लोगों ने बॉक्स ऑफिस पर मुझे इतना हिट किया कि मैं अंग्रेज़ों का दिया दर्द ही भूल गयी। इस वजह से मैं ज़िंदा ज़रूर बच गयी लेकिन मेरा बॉक्स ऑफिस अब तक सूजा हुआ है।
एक बात बताऊँ, जो ना रोज सब लोग राष्ट्रीय आंदोलन और 1947 में आज़ादी की बात करते हैं वो सिर्फ़ एक सुपरहिट फ़िल्मी कहानी है। 2014 से पहले हम जिस भारत में रहते थे वो केवल एक देश था, वो गाना आपने सुना होगा••• जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा वो भारत देश है मेरा•••। राष्टर्रटर्र वाद तो 2014 के बाद आया जब 2002 में हुई गोधरा क्रांति के बाद तमाम मेंढ़कों को टर्राने की आज़ादी की अहमियत मालूम हुई। जब भारत एक देश था तो देशी आंदोलन चलना चाहिए था ना कि राष्ट्रीय, बोलो बोलो।
और मैं आपको एक बात और बता दूँ कि मैं कोई पागल नहीं हूँ जो बिना सबूत के टर्र टर्र करूँ। मुझे पता है कि गाँधी जी का असली नाम बेन किंग्सले है जिन्हें अंग्रेजों ने हमारी वक़ालत करने और आज़ादी की भीख़ माँगने लंदन से भेजा था। नाम के आगे बेन देख कर कुछ लोगों ने उन्हें गुजराती बना कर पूरे इतिहास को कांग्रेसी प्रोडक्शन की फ़िल्म बना दिया। उनके पीछे रिचर्ड एटनबरो का हाथ था जो बाद में देशद्रोहियों का चुनाव चिन्ह बना। नेहरू उस वक़्त देश के एक रोशन सेठ थे और सरदार पटेल सईद जाफ़री। भगत सिंह ने केसरिया साफा बाँधा हो या नहीं पर मैंने कई बार उसे एड में अपनी जुबाँ को केसरी करते हुए देखा है। यही नहीं पिछले दिनों उधम सिंह ने सबकी आँखों के सामने लंदन में जनरल डायर को मार डाला। गद्दारो, कह दो कि ये भी झूठ है।
1947 की आज़ादी पर बनी कांग्रेसी-वाम प्रोडक्शन की इस फ़िल्म में नेपोटिज्म के अलावा कुछ नहीं। इसमें उस वीर का रोल ही काट दिया गया जिसे अंग्रेजों ने काला पानी पीने को दिया था। बंदा इतना वीर था कि जरा भी नहीं डरा। माफ़ी तक मांग ली लेकिन काले पानी को मुँह नहीं लगाया। बाद में उन्हीं अंग्रेजों से पैसे लेकर घर पर सोडा मिला के ही चखने के साथ उस काले पानी को पीना गवारा किया। बेवक़ूफ़ो, तुम्हारी खोखली सत्याग्रही देशभक्ति का जवाब थी ये राष्टर्रटर्र भक्ति। अब ये मत कहना कि आग्रह का मतलब भीख माँगना नहीं होता है।
मेरे चाहने वालों की भारी मांग पर मैं छोटे स्वदेशी गाँधी की अगुवाई वाले रामलीला आंदोलन की अपार सफलता के बाद 2014 में मिली आज़ादी के सच्चे इतिहास को लिप (lip) बद्ध करने जा रही हूँ। मुझे यक़ीन है कि इस काम में मुझे लीज देवी की तरह आप सभी टर्रटर्र वादियों का सहयोग मिलेगा। आने वाले दिनों में इसी तरह आपको मेरे लिप्स यानी होंठों से कई सनसनीखेज ऐतिहासिक तथ्य जानने को मिलेंगे। क्योंकि, मैं भी तो मर्दानी हूँ, झांसे वाली रानी हूँ।