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सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

लोकल वोकल !

Byआज़ाद

Aug 27, 2020

(प्रेस कांफ्रेंस – तीसरी किस्त)

पत्रकार – बुड़बक जी, ये आप सिर नीचे करके किस बात पर शर्मिंदा हो रहे हैं? कहीं आप पिछली बार की तरह इंटरव्यू में फोटो सेशन तो नहीं कर रहे?

बुड़बक – अरे मूर्ख, न तो मैं अपनी गलतियों पर कभी शर्मिंदा होता हूँ और न ही फोटो खिंचाने का मन है। कल ही मीडिया को दाना डाला है।

 

पत्रकार – तो फिर अपने चेहरे को इतना लो क्यों कर रखा है आपने?

बुड़बक – अरे ये काम तो मैं अठारह अठारह घंटे करता ही रहता हूँ। मैं देश के भविष्य यानी कल को लो कर रहा हूँ। मेरे इन संजीदा प्रयासों से ही वो कल आयेगा जिसका सबको इंतज़ार है।

 

पत्रकार – वो कल कौन सा और देश के कल को लो करके क्या होगा?

बुड़बक – मेरा ये नारा चरितार्थ होगा, लोकल के लिये वोकल।

 

पत्रकार – समझा नहीं?

बुड़बक – तू भी पूरा बुड़बकै है। लोकल मल्लब लो फ्यूचर और वोकल मल्लब वही कल जो देशवासी चाहते हैं। मैं तो फ़क़ीर हूँ उनके लिये सब बेच बाच के चल दूँगा। और अब सुन नेरू की तरह ज़्यादा डिस्टर्ब मत कर मुझे.. चरने को बहुत बचा है। अरे. इतना कुछ बना गया तो बहुत कुछ बेचना पड़ रहा है मुझे। खामखां काम बढ़ा गया मेरा।

पत्रकार (मूर्छावस्था में) – लोकल.. वोकल.. वोकल जो लोकल.. राम घर चल…कल कल.. छल छल.. हाला.. मधुशाला।

 

@भूपेश पन्त

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