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सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

चुनावी होली !

Byआज़ाद

Mar 7, 1994

रंगों की जब छूटी फुहार
हम भी हुए तैयार
प्रण कर लिया
नेता को रंग लगाएंगे
बिल्ली के गले में घंटी बांधेंगे
तभी
गुझिया और भांग खायेंगे।

धन्यभाग
नेताजी के दर्शन हुए
श्वेत वस्त्र भी थे धुले हुए
नेताजी ने
मधुरस वचनों में बधाई दी
रंगों में
मिलावट की दुहाई दी
लेकिन
प्रण भी तो निभाना था
भांग का घोटा लगाना था।

हमने अबीर हाथ में लेकर
वार कर दिया
उन्होंने
अविश्वास प्रस्ताव की तरह
बेकार कर दिया
हमने गुलाल का ढेर
कश्मीर समस्या की तरह उछाला
उन्होंने
गृह मंत्रालय की तरह
दुशाला बीच में डाला।

हम वार पर वार करते रहे
वो हम पर
सत्ता पक्ष की तरह हंसते रहे
हमने हर रंग उन पर डाला
लाल, हरा, नीला, पीला हो या काला

नेताजी मुस्कुराते रहे
श्वेत वस्त्र मुंह चिढ़ाते रहे
बोले
ये वस्त्र कलरप्रूफ हैं सारे
आरोप सभी
धरे रह जाएंगे तुम्हारे।

हमने फिर भी
हिम्मत नहीं हारी
अब आई कीचड़ की बारी
फेंकते ही वो लथपथ हो गये
यकीन मानिये
खुशी से गदगद हो गये

हमने देखा
हमने ये क्या कर डाला
बड़े आरोप से
उन्हें चर्चित कर डाला
चोर को ही संतरी बना दिया
नेता से उन्हें मंत्री बना दिया।

@भूपेश पन्त

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