मुंगेरीलाल मुग़ल काल का पहला बजट देख कर सो गया है। आज उसे फ़िर से अच्छे दिन का सपना आ रहा है कि वो मुग़ल पीढ़ी को मिली छूट के बचत के पैसों से एक मुर्गी ख़रीदेगा। पड़ोसी के मुर्गे को दाना डाल कर पटायेगा। मुर्गी अंडे देगी उससे छोटे छोटे चूजे होंगे। धीरे धीरे वो मांस और अंडे का व्यापारी बन जाएगा। तभी उसे जीएसटी का गर्म झोंका लगा लेकिन वो चौकीदार की तरह कंबल लपेट कर सो गया और फ़िर सपने में घुस गया। उसे साफ़ साफ़ दिख रहा था कि वो धीरे-धीरे सरकार को अपने धन बल से प्रभावित करेगा। अपना बड़ा महल बनाएगा, संजय के दर्शन को दूर से ख़रीद लेगा। सेवकों की टीम को कप्तान समेत नचायेगा।
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धीरे-धीरे वो बन्दरों की आरामगाह में चैन से बीड़ी फूंकते हुए हवा हवाई अड्डे और लौह पथगामिनी के पथों को अपने सेवकों के ज़रिए ख़रीदने लगा। इस तरह चुटकियों में उसने अपना विशाल साम्राज्य खाड़ी सॉरी खड़ा कर दिया। वो अपने सेवकों के साये में दूर देश तक घूमने लगा। उसने कई ऐसे जादुई आईने ख़रीद रखे थे जो उसे दुनिया का सबसे बड़ा सेठ बताते थे। एक दिन घूमते घूमते अचानक वो विदेशी आईने के सामने जा पहुँचा। आदत के अनुसार उसने अहंकार से भरे शब्दों में उससे पूछ लिया कि बता दुनिया के सबसे बड़े सेठ से मिलकर कैसा लग रहा है। ज़वाब में पहले तो आईना ठठा कर हँसा और फ़िर उसे आईना दिखाने लगा। ये देख जगत सेठ का पारा चढ़ गया और उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी शेयर मार्केट की रिपोर्ट उस विदेशी आईने पर दे मारी।
इसके साथ ही मुंगेरीलाल धड़ाम से बिस्तर से नीचे गिर पड़ा है। उसके हाथ से मुर्गी तो गयी ही गयी, उसके अंडे भी फूट गये। आप लोग जो मुंगेरीलाल की इस कहानी को पढ़ रहे हो अगर अपने हसीन सपने से बीच में ही जाग गये हो तो शुक्र करो कि आपकी मुर्गी और अंडे अभी बचे हुए हैं। बाक़ी बजट देखने के बाद इस गर्मी में भी कंबल ओढ़ कर सोने का मन कर रहा हो तो आपकी मर्ज़ी।
@भूपेश पन्त