हक़ीक़त है क्या फ़साना
मैं सब जान रहा हूँ
साधो जग का यूँ बौराना
मैं सब जान रहा हूँ।
सैफ़ ज़ुबाँ से बरगलाना
मालूम है लेकिन
ये कानों पर हाथ लगाना
मैं सब जान रहा हूँ।
लहू से सींचा सबने इस
देश की मिट्टी को
चाहते हो मगर झुठलाना
मैं सब जान रहा हूँ।
विषैले ताज ने दुनिया में
ये ज़हर जो बाँटा है
उसका नये रूप में आना
मैं सब जान रहा हूँ।
वो भीड़ नहीं थी दिशाहीन
बस एक जुनूँ सा था
उसे कोंच कोंच उकसाना
मैं सब जान रहा हूँ
भूख से मरें या फिर मरें
महामारी की मौत
एक आँकड़ा है बढ़ जाना
मैं सब जान रहा हूँ।
सबब है क्या मग़रूरी का
क़ातिल के लिये
मुंसिफ़ से है रिश्ता पुराना
मैं सब जान रहा हूँ।
जानता हूँ जानने से मेरे
कुछ खास नहीं होगा
लेकिन ज़रूरी है बतलाना
मैं सब जान रहा हूँ
हुकूमत के ख़िलाफ़ कोई
नज़्म न लिखी जाए
तुम चाहते हो ये मनवाना
मैं कहाँ मान रहा हूँ।
@भूपेश पन्त