• Fri. Jun 2nd, 2023

तेरे हक़ में
कुछ
बेहद मामूली
और
मेरे हक़ में
हर बड़ा फ़ैसला आना है
जब
इंसाफ़ खुद
सत्ता की तान पर
डोल रहा है
तो
किस कमबख़्त को
उसका
घंटा बजाना है।

तुझे
तो बस
झटपट न्याय
की
पड़ी है
उन्हें तो बाद में
सालों तक
चली बहसों और
अपराध की स्वीकारोक्ति
के बाद
सुबूतों के अभाव में
बरी
किये गये
इंसाफ़
का
ईनाम लेने भी जाना है।

तू
चाहता है
आँख मूँद कर
वो
कर ले तेरी
हर
दलील पर भरोसा
जबकि
गवाह और सुबूत
चीख चीख
कर कह रहे हैं
कि
गुनहगार को
बस
कपड़ों से पहचाना जाना है।

रे मूर्ख
सुन और समझ
सृष्टि का
बनना बिगड़ना
तय है
सूरज डूबना
चाँद
का निकलना
और
फूल का खिलना
तय है
क़ानून तय है
इंसाफ़ तय है
मेरी सत्ता तय है
तुम्हारा भविष्य तय है
और
जो कुछ रह गया
तय है
कल वो भी बिक ही जाना है।

सुना था
किसी मुगल जहाँगीर ने
फ़रियादी के लिये
इंसाफ़ का
घंटा था लगवाया
लेकिन
मैंने तो इंसाफ़
को
मिनटों का काम बनाया
भीड़ अदालतों
का गठन दरअसल
पंचों का काम
आसान बनाना है
ये तेरी
खुशक़िस्मती है
कि
मेरे हाथों
क़त्ल होने के बाद
तुझे
घंटा बजाने
मेरे पास ही आना है।

@भूपेश पन्त

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *