देश
बरबाद हो रहा है
इसका बहुत दुःख है मुझे
लेकिन
अफ़सोस इस बात का
ज़्यादा है
कि
बरबादी का ये मंज़र
लाने में
मेरे कुछ अपने भी शामिल हैं
जाने अनजाने
मुझे यक़ीन है कि एक दिन
वो भी बरबाद होंगे
और
उनके साथ मैं भी
क्या
मेरा ज़ुर्म इतना बड़ा था
कि मुझे
उनके विकास में
‘कास’ की जगह
‘नाश’ दिखाई देता है
चाहे
वो मेरे आँखों में
कितने ही चश्मे लगा दें
जो वो अपने
आँखों में लगाए बैठे हैं
बस
इतनी अपील है
आप सबसे
कि
अपना चश्मा बदलें
तुरंत
अगर आप भी
‘नाश’ को ‘कास’
और
‘दिमाग़’ को ‘आँखों’ पढ़ रहे हैं।