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विद्रूपताओं का आईना

भागवत कथा! – (दो)

Byआज़ाद

Jan 30, 2020

(गतांक से आगे)

कक्ष में अकेले बैठे धृतराष्ट्र के मन में कई विचार उठ रहे हैं और वो चैनल खुलने के इंतज़ार में बेचैन हो कर दोनों हाथ सहला रहे हैं।

दिव्यदर्शन वाले संजयना कक्ष में प्रवेश कर धृतराष्ट्र को प्रणाम करते हैं। लेकिन इससे पहले कि वो दिव्य दर्शन चैनल खोलकर सत्ता समाचार का सजीव प्रसारण उन्हें सुनाएं, दुर्योधन दनदनाते हुए कक्ष में प्रवेश करते हैं।

धृतराष्ट्र (चौंकते हुए)-

‘संजयना, मुझे बताओ क्या मेरे कक्ष में अच्छे दिन खुशियों की बाढ़ लेकर आये हैं?’

दुर्योधन (संजयना को बोलने से रोकते हुए)-

‘अच्छे दिन तो अब आएंगे पिताश्री। लेकिन कहीं आप मुझे मार्गदर्शक की तरह सुना तो नहीं रहे हैं?’

धृतराष्ट्र (क्रोधित होने का दिखावा करते हुए)-

‘देख और दिखा तो सकता नहीं पुत्र लेकिन क्या सुना भी नहीं सकता। क्या मुझे इतनी भी स्वतंत्रता नहीं है?’

दुर्योधन (गदा को कंधे पर लादते हुए) –

‘बस स्वतंत्रता या मुक्ति कहने की स्वतंत्रता है लेकिन अगर किसी ने आज़ादी कहा तो उसे कारागार में डाल दूंगा।’

धृतराष्ट्र, (मन की बात में) – ‘अरे! तू वियोगी की तरह बात मत कर, खुद ही बोल रहा है आज़ादी।’

(प्रकट रूप में)

‘सुनो पुत्र, तुम अब इस खैर और शाह को छोड़ो.. ये बताओ कि बाहर माजरा क्या है?’

‘अरे आप सुनेंगे तो उछल पड़ेंगे। बाहर लोग लाखों की तादाद में धरने पर बैठ गये हैं। मुझे तो लगता है फिर से मेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।’

दुर्योधन ने ग़लती से फिर अपनी गदा अपने सिर पर लदे राजमुकुट पर दे मारी।

धृतराष्ट्र (धड़ाम की आवाज़ सुन कर चौंकते हुए) –

‘अरे तो इसमें इतना उत्साहित होने की क्या ज़रूरत है पुत्र?’

अपनी ही गदा से झनझाये दिमाग़ को संभालते हुए दुर्योधन के कानों में यही शब्द पड़े।

दुर्योधन (राजमुकुट को संभालते हुए) –

‘याद है आपको, श्री राम की वो लीला जिसमें स्वामी अन्नबिना आलूबुखारे ने अन्नशन करके लाखों को धरने पर बैठा दिया था। सब भ्रष्टाचार से आज़ादी मेरा मतलब है स्वतंत्रता मांग रहे थे। आप तो जानते ही हैं कि अपनी कपटनीति से उसके बाद ही हम इंद्रप्रस्थ की सत्ता हासिल कर पाए।’

धृतराष्ट्र (अपना सिर पीटते हुए) –

‘अरे लेकिन तब हम विपक्ष में थे और हमें सत्ता चाहिए थी अपने लक्ष्य को पाने और पूरे देश को धृतराष्ट्र मेरा मतलब है एक राष्ट्र बनाने के लिये। लेकिन वही धरना और वही नारे आज क्यों जबकि सत्ता हमारी है?’

‘दया ज़रूर कोई गड़बड़ है, पता करो (अचानक प्रद्युमन की बात की रौ में बहते हुए).. ‘

दुर्योधन के चेहरे की रंगत थोड़ी उड़ चुकी थी और तभी संजयना अधीर राष्ट्रगामी मनबसिया ने चैनल खोल कर बतौर एंकर समाचार और विचार की माताओं बहिनों को एकजुट करना शुरू कर दिया।

धृतराष्ट्र (चैनल से आ रही एंबियंस को सुनने की कोशिश करते हुए) –

‘पुत्र दुर्योधन, ये मुझे चैनल पर.. सत्ताहीन जाग, सत्ता की तौहीन भाग जैसे नारे क्यों सुनाई दे रहे हैं?’

दुर्योधन (चैनल की तरफ़ नज़र गड़ा कर) –

‘पिताश्री, ये कोई रामलीला का मतिदान नहीं है बल्कि अपने राज्य का कोई शाहीन बाग़ है जहाँ मातोश्री गांधारी अपनी आँखों की पट्टी खोल कर हमारी निरंकुश सत्ता से आज़ादी के नारे लगा रही हैं।’

संजय (बीच में घुसपैठ करते हुए) –

‘महाराज दुर्योधन, ये भी देखिये कि इस बार आंदोलन का केंद्रबिंदु पिछली बार के स्वामी अन्नबिना नहीं कोई दादी अम्मा हैं।’

धृतराष्ट्र (बड़बड़ाते हुए) –

‘ये मेरी ही आँखें क्यों नहीं खुलतीं।’

दुर्योधन (वर्चुअल टीवी की ओर इशारा करते हुए) –

‘अरे एक नहीं कई दादी अम्मा हैं।’

(बड़बड़ाते हुए) ‘ये इस जनता के अंतर्नेत्र इतनी जल्दी चालू कैसे हो गये। मेरी ही ग़लती थी कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे राज्य में सिगनल बंद नहीं किये।’

धृतराष्ट्र (उत्सुकता से)-

‘अरे इस बाग़ में बहार है तो क्या पांडव भी यहाँ के भ्रमण पर हैं?’

दुर्योधन (दाँत पीसते हुए) –

‘नहीं, वही तो नहीं आ रहे फँसने मेरे जाल में और इधर हम फंसे हैं चायनावॉल से टकराने में। लगता है वो लोग फिर से अज्ञातवास में चले गये हैं और हमें इस केजरीवॉल के सामने अकेला छोड़ गये हैं।’

अपशकुनि मामा (कक्ष में प्रवेश करते हुए) –

‘लेकिन भांजे… उस कन्हैया से सावधान रहना। वो संविधान की रक्षा के लिये अपना मुँह खोल कर हमें ब्रह्मांड के दर्शन करा रहा है।’

दुर्योधन (मामाश्री को बाँहों में भरते हुए) –

‘मामाश्री कमाल है आप तो कपट नीति से हमारी बड़ी से बड़ी मुश्किल सीमापार कर देते हो। आपसे बड़ा सियासी जुआरी आज कोई नहीं। आपने अब तक उस नटवर का कोई इलाज नहीं किया?

मामाश्री (दुर्योधन को आशीर्वाद देते हुए) –

‘अरे मैं तो कब से तैयार बैठा हूँ कि वो शांतिदूत बन कर मेरे प्रिय भांजे के दरबार में आए और मैं उसे राष्ट्रद्रोह की बेड़ियों से जकड़ दूँ।’

दुर्योधन (चेहरे पर कुटिल सादगी लाते हुए) –

‘अब इस बाग़ का क्या इलाज़ है अपने पास वो बताओ मामाश्री।’

मामाश्री (कुछ सोच कर कमल से खिलते हुए)-

‘दु:शासन… हमारे कुशासन की नयी पीढ़ी के दु:शासन को भूल गये भांजे.. वैसे भी अब हमने दु:शासनों की पूरी सेना तैयार कर ली है।

दुर्योधन (उछलते हुए) –

‘सही कहा मामा अपशकुनी, उसको तुरंत हैड ऑफिस में बुलाओ। उसे चीरहरण का पुराना अनुभव है और वो हमारी साइबर सेना का सेनापति भी है। उसे बताओ कि इस बाग़ की महिलाओं समेत पूरे आंदोलन को कैसे बदनाम करना है।

मामा अपशकुनी (दोनों हथेलियों से पासा रगड़ते हुए) –

‘भांजे.. मैं कोई चाल अधूरी नहीं छोड़ता। मैंने टुकड़े टुकड़े कर देने हैं अपने प्यारे सौ झूठ के बराबर सच्चे भांजों के विरोधियों के।’

दुर्योधन (उत्तेजित हो कर तेज़ी से टहलते हुए) –

‘मामाश्री, विरोधियों को कपड़ों और खाने के तरीके से पहचानने का मंत्र दे कर उन्हें गोली मारने के लिये भड़काना होगा।’

मामाश्री (सजी हुई चौपड़ पर पासा फैंकते हुए)-

‘चिंता मत करो भांजे मैं संदिग्ध कपड़े पहना कर, पोहे का रायता फैला कर और झूठी कसम खिला कर ऐसे ऐसे वीडियो फैलाऊँगा सॉरी कठपुतले नचाऊँगा कि पितामह भीष्म भी वाह वाह कर उठेंगे।’

पासे में अपनी जीत का अंकगणित देख और उससे निकले टू एबी को लेकर मामा अपशकुनी कक्ष से निकल जाते हैं।

शेष अगले अंक में….

@भूपेश पन्त

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