(गतांक से आगे)
धृतराष्ट्र (आँखें मिचमिचाते हुए) –
‘अरे पुत्र दुर्योधन जरा संजयना को आवाज़ तेज़ करने को कहो।’
संजयना (तुरंत एक्शन में आकर टीपी पढ़ने लगते हैं) –
‘तो आप इस वक़्त देख रहे हैं इस वक़्त की सबसे तेज़ ख़बर। नेशन वांट्स टु नो कि जब महाराज दुर्योधन ने देश में देशप्रेम और भाईचारे के फूल उगाने प्रतिबंधित कर दिये थे तो शाहीन बाग़ में अचानक मुहब्बत और प्रेम के फूल कैसे खिल आये? ये लोग महाराज के राज में किस लोकतंत्र और संविधान की बात कर रहे हैं? ये लोग कौन से कागज़ नहीं दिखाने की बात कर रहे हैं? अरे ये लोग तो अब हमसे भी बात नहीं कर रहे हैं।
धृतराष्ट्र (चिढ़ कर संजयना की आवाज़ म्यूट करते हुए) –
‘पुत्र दुर्योधन ये लोग तो तुम्हारा ही डायलॉग तुम पर चेप रहे हैं जो तुमने पुष्पक विमान ख़रीद और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कहे थे। याद है ना कि तुमने ही तो फाइल नहीं दिखा कर स्ट्राइक के सबूत मांगने को देशद्रोह ठहराया था।’
दुर्योधन (माथे के पसीने से चेहरा चमकाते हुए) –
‘पिताश्री, मैं आज भी अपने अहंकार के साथ जी रहा हूँ और वही मेरा मूल चरित्र है। तो फिर मेरी ही मन की बात कोई मुझ पर कैसे थोप सकता है? मैं गद्दारों को अपने बाल मन से कभी भी माफ़ नहीं कर सकता।
धृतराष्ट्र (मूँछों को सहलाकर) –
‘लेकिन मैं अभी तक ये नहीं समझ पाया हूँ कि तुम दोनों ये कौन सा गेम खेल रहे हो? जहाँ तक मैं समझता हूँ जब तुम लोग मुझे किनारे लगा सकते हो तो इस सबके पीछे तुम्हारा कोई बड़ा गेम प्लान ज़रूर होगा।’
दुर्योधन (ताली पीट कर) –
‘ये आप सही पकड़े हैं पिताश्री। मैं नरों में इंद्र हूँ और उन्हीं की तरह अपनी सत्ता और परिवार की रक्षा के लिये वज्र जैसे ब्रह्मास्त्र का स्वदेशी निर्माण कर रहा हूँ।’
धृतराष्ट्र (हैरानी भरे स्वर में) –
‘लेकिन उन्होंने तो इसके लिये महर्षि दधिचि से उनके प्राणों का बलिदान लिया था।’
दुर्योधन (ठहाका लगा कर) –
‘मैं भी तो राज्य हित में नागरिकों से तर्क, बुद्धि, विवेक, ज्ञान, सत्य और अधिकारों का बलिदान मांग रहा हूँ। साथ ही इस बात का सबूत भी मांग रहा हूँ कि वाकई कौन उस बलिदान के क़ाबिल है।’
धृतराष्ट्र (सकपकाते हुए) – वो कैसे पुत्र मुझे जरा पब्जी की भाषा में समझाओ।
दुर्योधन (गोपनीय अंदाज़ में) –
‘सुनिये पिताश्री, मैंने पिछले कुछ महीनों में जानबूझकर कुछ ऐसी नीतियाँ लागू की हैं जो लोगों को अपने और पराये के खेमे में बाँटती हो। मुझे पता है कि इससे राज्य की वो सभी पाठशालाएं चिह्नित होंगी जो छात्रों को अपने अधिकारों का बोध करा रही हैं, उन्हें तर्कपूर्ण और विवेकशील बना रही हैं। इन नीतियों का विरोध वही करेगा जिसमें राज्य की विविधता और भाईचारे का सम्मान होगा, मेरा नहीं। इस तरह ऐसे सारे मेरे पढ़े लिखे विरोधी पहचाने जाएंगे। मैं अपनी सेना से उन पर हमले करूंगा। जनता असुरक्षित महसूस करेगी और हम उन्हें ज़िम्मेदार ठहराएंगे। लोगों का ध्यान हर मुद्दे से हट जाएगा और फिर जो पाला बदल कर मेरी शरण में नहीं आएगा उसे मैं क़ैदखाने में डाल दूँगा।
धृतराष्ट्र (बंद आँखों को गोल करते हुए) –
‘लेकिन इससे वज्र कैसे बनेगा पुत्र?’
दुर्योधन (उपहास उड़ाने के अंदाज़ में) – अरे वैसे ही बनेगा पिताश्री, जैसे कैलासा बना। जब हमारे सारे विरोधी गद्दार ठहरा कर लाठी, गोली से मारे जाएंगे या जेल में ठूंस दिये जाएंगे तो बताइए कौन से नागरिक ज़िंदा बचेंगे?
धृतराष्ट्र (खुद से बुदबुदाते हुए) –
‘काश कोई मेरी बुद्धि भी ऐसे ही छीन कर कुछ दिन के लिए मुझे सिंहासन पर बैठा देता।’
(प्रकट रूप में)… ‘वही जो तुम्हारे भक्त होंगे।’
दुर्योधन (धृतराष्ट्र के दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए) –
‘अरे नहीं, वो सब तर्कहीन, विवेकहीन, आप की तरह अक्ल के अंधे यानी वज्र मूर्ख होंगे। हमारे चारों ओर केवल वज्र मूर्ख होंगे जो हमारी दया पर जीवित रहेंगे और सन्मति, सद्भाव, समानता, धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व जैसे गुणों से हमारी रक्षा करेंगे। अज्ञानता ही सत्ता की रक्षा करने का सबसे बड़ा हथियार है और मूर्खता का सामूहिक उपयोग वज्र की तरह मारक है।’
धृतराष्ट्र (सहमे से अंदाज़ में)- ‘लेकिन मैंने सुना है कि बेवकूफ़ मित्र से समझदार दुश्मन ज़्यादा फ़ायदेमन्द होता है।’
दुर्योधन (अपने चेहरे पर हिटलरी भाव लाते हुए) –
‘लेकिन यहाँ पर दोस्त कौन है? सब हमारे सेवक हैं, चौकीदार हैं.. और वैसे भी हमारा मानना है कि हम सब पुरातनी लोग पैदायशी अक्ल के दुश्मन हैं। सच कहूँ तो मेरी असली लड़ाई पांडवों से नहीं गांधी और नेहरू के साथ है। तो मैंने गांधी से ग और नेहरू से रू चुरा कर गुरु यानी विश्व के वज्रमूर्खों का गुरु बनने का फैसला लिया है। मामाश्री ने पटेल की चाइनीज मूर्ति से उनका लौहपुरुष पहले ही चुरा लिया है। तो ये है हमारे इस गेमप्लान के पीछे का असली गेम।’
ये सब सुन कर अचानक दर्शकों की भीड़ के सामने मंच पर ही धृतराष्ट्र बने कलाकार ने सिर से अपना मुकुट उतार कर दुर्योधन के पात्र के चरणों में रख दिया।
‘हे दुर्योधन… मैं समझ गया कि कपटनीति के मामले में तुम मेरे नहीं सब मूर्खों के बापू हो, राज्य के सभी वज्र मूर्खों की ओर से तोफा क़बूल करो। जब तुम बिना डिग्री परीक्षा पर चर्चा कर सकते हो तो ये सब भी मुमकिन है।’
फिलहाल इस नाटक को अचानक हुए इस व्यवधान के कारण रोकना पड़ा है और मंच पर पर्दा धीरे धीरे गिर रहा है। उधर दर्शक तालियाँ बजा बजा कर ‘हमारा एक ही रतन, दुर्योधन दुर्योधन’ के नारे लगा रहे हैं।
@भूपेश पन्त