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विद्रूपताओं का आईना

भागवत कथा! – (एक)

Byआज़ाद

Jan 29, 2020

महाभारत की मौजूदा स्थिति के जनक (त्रेता युग वाले नहीं) लेकिन दूरदृष्टि हीनता के कारण अब सिंहासन से दूर जा चुके धृतराष्ट्र कॉर्पोरेट नुमा महल के अपने कक्ष में बैठे हैं। उन्होंने अभी अभी महाराज दुर्योधन को राज्य के हालात की जानकारी पाने के लिये बुलावा भेजा है। वैसे दुर्योधन की हरकतों से नज़र फेरे उन्हें कई साल बीत चुके हैं।

दुर्योधन ने लंबे इंतज़ार के बाद कक्ष में प्रवेश किया और गरज भरी आवाज़ के साथ पिताश्री को नमस्कार न करते हुए सीधे पूछा-

‘क्या बात है पिताश्री, विदेश दौरों के व्यस्त कार्यक्रम के बीच अचानक मुझे क्यों याद किया?’

धृतराष्ट्र – ‘पुत्र दुर्योधन मुझसे तो झूठ न बोलो। तुम और तुम्हारे अपशकुनी मामा आजकल यहाँ झांकने भी नहीं आते। लेकिन सच तो ये है कि मैं ही तुम्हारे और अपने परिवार के मोह में कब से अंधा हो चुका हूँ। लेकिन तुम ये बताओ कि राज्य के हालात तो क़ाबू में हैं ना।’

दुर्योधन- ‘आप चिंता न करें पिताश्री हमने हर हथकंडे के दम पर राज्य की कमान अच्छी तरह से संभाल ली है। हमने राज्य की भारीभरकम अर्थव्यवस्था को रात दिन लग कर ऐसी ढलान में धकेल दिया है कि अब उसकी रफ़्तार बढ़ना तय है। बेरोजगार चिड़िया बम फोड़ने और अफ़वाहों की किताब छापने में व्यस्त हैं। राजकीय कोष का धन हमने परिवार के व्यक्तिगत कोष में स्थानांतरित करवा दिया है। राज्य की जनता त्रस्त हो कर भी मस्त है। ‘

धृतराष्ट्र (गद् गद होने की चेष्टा करते हुए) –

‘मेरे मोह के सौ टुकड़ों में से मेरे सबसे बड़े टुकड़े मेरे पुत्र गदाधारी दुर्योधन, विरोधी पांडव जिस इंद्रप्रस्थ की मांग कर रहे हैं उस पर तुम्हारा क्या विचार है?’

दुर्योधन जोश में आते हुए अपनी ही जंघा पर गदा मार देता है और पैर पकड़ कर बैठ जाता है। (दांत पीसते हुए) –

‘पिताश्री.. मैंने अपशकुनि मामा को भेज कर अपने विचार विपक्ष के नेताओं मेरा मतलब है पांडवों को बता दिये हैं।’

धृतराष्ट्र ने हैरानी से अपनी बंद आँखें फैलाते हुए पूछा-

‘क्या कहा तुमने उनसे?’

‘पिताश्री, मामा श्री ने उनको संदेश दे दिया है कि अपनी सियासी ज़मीन से मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूँगा। ये बात उन्होंने अपनी साइबर सेना के सामने कही और वहाँ पड़े डंके पर चोट भी मारी।’

दुर्योधन ने गर्दन को अकड़ से हिलाते हुए कहा।

तभी कक्ष में पितामह भीष्म ने प्रवेश किया। धृतराष्ट्र और दुर्योधन ने झुककर प्रणाम किया तो परेशान लग रहे भीष्म ने धृतराष्ट्र की ओर मुड़ कर कहा,

‘मैं तो संविधान की प्रतिज्ञा से बंधा हूँ लेकिन तुम तो सब कुछ जान कर भी अपनी आँखें बंद किये हुए हो। मैं तो बस एक ऐसा उदासीन या निष्पक्ष वोटर हूँ जो गुस्से में भी आएगा तो नोटा ही दबाएगा। मेरी तो मजबूरी है कि मैं सत्ता का विरोध नहीं कर सकता। मैं पितामह हूँ लेकिन लोग मुझे सीबीआई, ईडी, चुनाव आयोग, पुलिस और कोर्ट जैसे रूपों में भी देख सकते हैं। मैं एक ऐसा संवैधानिक संस्थान बन कर रह गया हूँ जिसे आज बूढ़ा और कमज़ोर कर दिया गया है।

धृतराष्ट्र (सकपका कर आँखें चौड़ी करते हुए)-

‘अगर आप ही सब कुछ हो पितामह, तो फिर मैं कौन हूँ?’

पितामह ने मुस्कुराते हुए कहा,

‘पुत्र तुम तो हमारे मार्गदर्शक हो। जो तुम आजतक अपने को साबित नहीं कर पाए।’

तभी नेपथ्य से अचानक शोरगुल की आवाज़ सुन कर सबका ध्यान उस ओर जाता है।

धृतराष्ट्र (दोनों हाथ हवा में घुमाते हुए) –

‘ये क्या हो रहा है पुत्र, तुरंत दिल्ली पुलिस को मौके पर भेजो मामले की पड़ताल के लिये।’

दुर्योधन (चौंकते हुए)-

‘कहीं उस कम्बख्त डीएसपी ने तो अपने गेम को.. नहीं नहीं अभी देखता हूँ..’

दुर्योधन बड़बड़ाते हुए तेजी से प्रस्थान कर जाता है।

धृतराष्ट्र (हड़बड़ाते हुए) –

‘पितामह, लगता है कि ये देश के गद्दारों को गोली मार कर ही वापस आएगा। आप जरा मुझे बाहर का आँखों देखा हाल सुनाएंगे।’

भीष्म (कक्ष से बाहर को जाते हुए)-

‘सुनो पुत्र.. तुम्हें इसके लिये मेरी नहीं ऐसे चैनलों की जरूरत है जो तुम्हें वही सुनाएं जो तुम सुनना चाहते हो। मैं अभी चलता हूँ और तुम्हारे प्रिय दिव्यदर्शन के एंकर संजयना अधीर राष्ट्रगामी मनबसिया को भेजता हूँ।’

शेष अगले अंक में …

@भूपेश पन्त

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