(प्रेस कांफ्रेंस- दूसरी किस्त)
पत्रकार – साहब, आप हर समस्या का इतना अच्छा समाधान कैसे ढूँढ लाते हैं?
बुड़बक – दरअसल मैं बचपन से ही समाधान पसंद रहा हूँ। समस्या पैदा हुई नहीं कि मैं मौके पर ही समाधान कर डालता था। ये इनबिल्ट है और इसमें मेरा कोई हाथ नहीं। मैं तो कमाल का फूल हूँ।
पत्रकार – ये तो आपका बड़बोलापन सॉरी बड़प्पन है लेकिन कैसे मैनेज कर लेते हैं आप?
बुड़बक – तुम न्यूज वाले भी ना परम दर्जे के…. मेरे भक्त हो। इतना भी नहीं समझते कि हम समस्या की जड़ तक जाकर समाधान कैसे ढूँढ लाते हैं? अरे ज़्यादातर समस्याएं तो हमारी ही पैदा की हुई हैं। जब समस्या ही हम हैं तो समाधान भी तो हम ही होंगे ना।
पत्रकार – लेकिन हर समस्या के लिये पहला ज़िम्मेदार क्यों?
बुड़बक – अब ज़िम्मेदार तो वही होगा ना जो जवाबदेह होगा। वैसे भी उसे किसने कहा था पहला बनने को। थोड़ी सी आज़ादी की डेट आगे नहीं कर सकते थे। ये मौका मेरे मौके पर फिट बैठा होता तो चाय बेचकर, संन्यास लेने के बाद घर बार छोड़ कर और हाथ जोड़ कर टप्प से पहले की कुर्सी पर बैठ जाता। अब तक तो पूरी तरह देश का बेड़ा गर्क सॉरी पार हो गया होता।
पत्रकार – आप इतनी बेबाकी और फ़क़ीरी से अपनी खामियाँ सॉरी खूबियाँ कैसे क़बूल कर लेते हैं?
बुड़बक – तुम तो इतना खुश हो रहे हो जैसे कि जागने के बाद तुम्हें ये सब कुछ याद रहने वाला है। वैसे भी मेरा कहा किसी को याद नहीं रहता और करता मैं अपने मन की ही हूँ। अब तक इतने जुमले ऐसे ही नहीं उछाले मैंने। मैं दिन को रात कहता हूँ तो लोग आँखें बंद कर लेते हैं। मैं रात को दिन कहता हूँ तो लोग बस्तियां जलाने लगते हैं। कुल मिलाकर स्थिति को तनावपूर्ण हमने बनाया तो उस पर नियंत्रण भी हमारा ही होगा। बूझे कि नहीं बूझे! (चलते चलते जेब में हाथ डाल कर)
बस ये समाधानपसंद की पुड़िया से मेरी दोस्ती बनी रहे।
नोट – ये कहने की ज़रूरत तो नहीं कि ये पूरी बातचीत काल्पनिक है फिर भी कह देता हूँ। वैसे भी प्रेस कांफ्रेंस शब्द ही बुड़बक की डिक्शनरी से गायब है।
@भूपेश पन्त