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सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

होता तो क्या होता !

Byआज़ाद

Mar 12, 2021
फोटो साभार

वो दर बदर इस कदर नहीं होता

गर ये बहरों का नगर नहीं होता।

 

लाख चाह ले वो तुझको लेकिन

प्यार से ही तो गुज़र नहीं होता।

 

बड़े दिल न हों चौड़ी सड़कें हों

गाँव क्यों ऐसा शहर नहीं होता।

 

घोंट देता है खुद ही अपना गला

जो हालात से बाख़बर नहीं होता।

 

पहन कर भक्ति का ताबीज उसे

किसी बात का असर नहीं होता।

 

सरकार ये बोल के पिला देती है

क़ानूनन दवा में जहर नहीं होता।

 

वक़्त भी यूं चल पड़ेगा उल्टे पाँव

गुमां होता तो ये हशर नहीं होता।

 

खुशफ़हमी में हैं सारे अतीतजीवी

डराते हैं उन्हें जिन्हें डर नहीं होता।

 

खासियत है यही गूंगों के देश की

उन में कोई अगर मगर नहीं होता।

 

बचाना होगा ज़म्हूरी विरासत को

हम न होते ग़र ये शज़र नहीं होता।

 

खोल दो ये सारी खिड़कियां अब

बुलंद हौसलों को सबर नहीं होता।

 

आज़ाद परिंदों ने भर ली परवाज

फ़रेबी हवा में ऐसे बसर नहीं होता।

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