• Thu. Nov 21st, 2024

सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

यदा यदा हि मर्मस्य….

Byआज़ाद

Feb 4, 2023

 

रोज़ कहते हैं हरम में जाने से पहले
मेरी वफ़ा का हर कोई तलबग़ार है।

सुना है ये जुमला सरदार के बाद से
तेरी ज़म्हूरियत में बहुत असरदार है।

नहीं बदलेगी ज़ेहनियत ये मालूम है
अक़ल का मंदा बहुत ही कारोबार है।

वो एक दिन कर देगा सबको नंगा
उसका शहर में कपड़ों का बाज़ार है।

बेटियाँ बचाओ, बलात्कारी बचाओ
चेतावनी नहीं ये पार्टी का इश्तेहार है।

सुलगी बस्तियाँ और ये वहशी नाच
कोई बतायेगा ये कौन सा त्योहार है।

लाशों पर खड़ी श्मशान सी जल रही
किससे पूछें किस धरम की मीनार है।

मसला वही, मुंसिफ भी वो सुराग भी
फ़ैसला ये है कि ख़ुद वही शिकार है।

इन्साफ़ के लिए पड़ते हैं पीठ पे कोड़े
जो सबसे कम चीखे वही गुनहग़ार है।

संभल गया है लेकिन उठ नहीं सकता
उसका ज़मीर ही इतना वज़नदार है।

सब ओर जाहिल और लम्पट हैं हुजूर
ये हुजूम ज़रूर आपका ही दरबार है।

यूँ ही नहीं बने हो रौनक महफ़िल की
इसकी वज़ह यही नारंगी सलवार है।

नीयत ही बनती है संविधान की म्यान
वर्ना तो हर शै एक दोधारी तलवार है।

बेहद खुशनुमा है उस जेल का मौसम
कहते हैं कि वहाँ चोर ही चौकीदार है।

दाँव पर लगा दी हैं कई पीढ़ियां उसने
जुआरी के सामने मसला ए एतबार है।

टूटे हुए आईनों में दिखता है हर रोज़
मैं नहीं जानता वो कौन सा किरदार है।

भूखे की थाली में दो कौर नफ़रत के
साथ में भरपेट आश्वासन का अचार है।

अंगारों पर लोट रहे हैं देखो सारे भक्त
फ़क़ीर की झोली में ऐसा चमत्कार है।

@भूपेश पन्त

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *