देश बहल रहा है, यही काम चल रहा है
ठंडे पानी में जैसे कि अंडा उबल रहा है।
नकली फूल असली तितलियां हैं बाग में
बहार देख ये भ्रमित भँवरा मचल रहा है।
वैसे ये अपनी अपनी आदत की बात है
डंडे खा के भी देखो गदहा उछल रहा है।
जने हैं उन्होंने नफ़रत के लारवा कितने
गंदे पानी का मच्छर घर घर पल रहा है।
चारों तरफ अजब है विकास का नज़ारा
वो गाँधी बंट रहा है ये नेहरू छल रहा है।
आता है उसे अपना रास्ता साफ़ करना
हिटलर सा बुलडोजर सब कुचल रहा है।
जन्नत में हर ओर बस बूटों की आहट है
मन की बात का नया सीजन चल रहा है।
खुश रहो नये मकान की अगाड़ी देख के
फ़िक्र ना करो कि पिछवाड़ा जल रहा है।
सही आँच पर चढ़ी है ये काठ की हांडी
भक्ति भात का हर एक दाना गल रहा है।
सिर चढ़ के बोल रहा है जुमलों का नशा
अख़बार कहते हैं नौजवां संभल रहा है।
ऊपर मेक इन इंडिया की लगी है तख़्ती
चायनीज ठेले पर वो पकौड़े तल रहा है।
हो गयी है ऐसे ऐसे विद्वानों की भरमार
विश्वगुरु का भार से दम निकल रहा है।
बेटियां बचाना सुन चेतावनी है तेरे लिये
तू ही नहीं समझा वो कब से कह रहा है।
फोटू खिंचा के मस्त हैं जो आलमपनाह
ये देख के अंधा भावनाओं में बह रहा है।
सब कुछ बता रही है तेरे चेहरे की खुशी
किसके ग़म के लिये फ़ितना सह रहा है।