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विद्रूपताओं का आईना

वक़्त तो लगता है !

Byआज़ाद

Sep 20, 2019

सजधज कर आने में वक़्त तो लगता है
ऐसी फ़क़ीरी पाने में वक़्त तो लगता है।

आम हो चाहे अवाम हो लेकिन
उन्हें चूस के खाने में वक़्त तो लगता है।

बदल दो तुम ये पुराने बुतों के नाम
नया कुछ भी बनाने में वक़्त तो लगता है।

है हमें उसकी बदनीयत का यक़ीं
बात खरी समझाने में वक़्त तो लगता है।

धर्म के चोले में जो हैं रसूख़दार
उनको अंदर जाने में वक़्त तो लगता है।

तू कर ही लेना अभी और इंतज़ार
अच्छे दिन के आने में वक़्त तो लगता है।

बहुत दिनों तक झुकी रहीं आँखें
ज़मीर के मर जाने में वक़्त तो लगता है।

लहू जो हो गया हो रगों का ठंडा
मुद्दों को सुलगाने में वक़्त तो लगता है।

होती है भोर की नींद बड़ी गहरी
सपनों से जगाने में वक़्त तो लगता है।

दुरुस्त है उनका हाज़मा फिर भी
विकास को पचाने में वक़्त तो लगता है।

उसका चेहरा क्यों इंसानों जैसा है
गुत्थी ये सुलझाने में वक़्त तो लगता है।

हुकूमत को चाहिए और साल अभी
सारी नौकरी खाने में वक़्त तो लगता है।

क़त्ल होना है चलो जश्न मना लें
सबकी बारी आने में वक़्त तो लगता है।

आती है जब उमर सवालों वाली
बच्चों को सुलाने में वक़्त तो लगता है।

चंद पलों का साथ बहुत नहीं होता
किस्सा कोई सुनाने में वक़्त तो लगता है।

 

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