व्यंग्य कविता लोकतंत्र! अंतिम प्रणाम? Mar 1, 2023 आज़ाद हर दिन बातों से तमाम करते हो सुना है कि तुम क़त्लेआम करते हो। बन गये हो दानिशमंद अब इतने…