● जंगल की कोई याद बताइये?
अरे मैं तो जंगल में ही पला बढ़ा हूँ। मुझे शुरू से ही चुनौती पसंद है अगर वो मेरे एजेंडे के मुताबिक हो। जब मैं बचपन में छोटा था तो किसी ने मुझसे कहा था कि जंगल में जाकर जंगली बनना बच्चों का खेल नहीं है।
● तो फिर आपने क्या किया?
अरे तो मैं इस प्रोग्राम में आ गया।
● कुछ और मजेदार बताइये?
बचपन में ही किसी ने ये भी कहा था कि राजनीति करना बच्चों का खेल नहीं।
● तो आपने क्या किया?
अरे मैंने उसे सच में बच्चों का खेल बना दिया। देखो सब हमें यहाँ देख कर ताली बजा रहे हैं। उन्हें तो ये भी पता नहीं कि ये पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का मेरा अपना तरीका है।
● तो आप भावुक और अहिंसक हैं?
बिल्कुल, मैं तो इतना भावुक हूँ कि बिना मौके के भी रो सकता हूँ। क्या करूँ आपकी तरह इंसान नहीं हूँ ना, कलाकार हूँ और वो भी सबसे अच्छा। मुझ पर तीन घंटे की फिल्म भी बन चुकी है। अहिंसक तो इतना कि किसी को बेमौत मरते देख नहीं सकता, उस पर कुछ बोल नहीं सकता और न ट्वीटर पर कुछ लिख सकता हूँ। बस मुझे मौत को आसान बनाने का टोटका ज़रूर आता है।
● वो कैसे?
अरे यार… बस साँसबंदी ही तो करनी है। नोटबंदी की थी तो देखा नहीं कितने लोग घुट घुट कर मर गये? इल्जाम किसी के सर आया क्या.. आया क्या… ? नहीं आया।
● आपको इस प्रोग्राम की शूटिंग में कितना मजा आया?
बहुत ज्यादा। पहली बार अपने इलाक़े में किसी रोमांच प्रेमी इंसान से मिल कर अच्छा लगा। मेरा एक और अराजनीतिक इंटरव्यू भी हो गया नयी लोकेशन पर। लेकिन आप “शूटिंग” शब्द को एडिट कर देना उससे दर्शकों को कश्मीर की याद आ सकती है।
● जी आपका धन्यवाद।
अरे सुनो, किसी ने बचपन में मुझसे ये भी कहा था कि देश को ग़ुलाम बनाना बच्चों का खेल नहीं है।
● सर, मेरा ऐपीसोड यहीं खत्म। अब आप ये सब बातें लोगों को धीरे धीरे खुद डिस्कवर करने दीजिए। इसके लिये लंबा समय चाहिए जो आपको अभी मिलता रहेगा।
जय तुलसी मैया की। बस ये दोस्ती बनी रहे।
(पार्श्व से भक्ति संगीत… झिंगा लाला हुम.. सारे मुद्दे गुम.. हुर्र हुर्र.. झिंगा लाला हुम.. मारे गये तुम.. हुर्र हुर्र..)
@भूपेश पन्त