राष्ट्रवाद की सुनामी ने गुलीवर को उस टापू पर ला पटका है जहाँ कई सालों से बौनों का राज है और बौनों की ही प्रजा। आम तौर पर सब मिलजुल कर रहते हैं और तमाम गिले शिकवों के बावजूद एकदूसरे से सीधे मुँह बात करते हैं। बौनों ने सपने में भी इतने लंबे कद का हाड़ मांस का इंसान नहीं देखा। इसलिए लंबा होना ही उनके लिये बड़ा होना है। हां कुछ आदमकद मूर्तियाँ जरूर देखी हैं उन्होंने टापू पर लेकिन उनका असल ज़िंदगी से कोई लेना देना नहीं रहा। जब जिसका जनम बार या पुण्य तिथि आती तब उसकी मूर्ति चमका दी जाती। बहरहाल गुलीवर के चारों ओर जमा हुए बौनों को ये सब कुछ एक दैवीय चमत्कार सा लग रहा है। उन्हें इस बड़े कद के इंसान में मौजूदा बौनी सत्ता का एकमात्र उपयुक्त विकल्प नज़र आने लगा है।
गुलीवर भी अपने इर्द गिर्द मंडरा रहे करोड़ों बौनों को देख कर हैरान है। वो उन्हें डराना चाहता है लेकिन बौनों के मित्रवत व्यवहार ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। गुलीवर को अब बौनों को देखकर मजा आने लगा है। शायद पहली बार उसे अपनी लंबाई पर अहंकार होने लगा है। वो समझ चुका है कि जहां पुचकारने भर से काम चल जाए वहां डर के एजेंडे को वक्त आने पर ही इस्तेमाल करना चाहिये, बार बार नहीं।
गुलीवर को बौनों से संवाद स्थापित करने में कोई मुश्किल नहीं हुई। वो कई तरह की भाषा बोल सकता है। अतिरेक की भाषा उसे सबसे ज्यादा पसंद है जिसमें होश की नहीं जोश की ज़रूरत होती है। वो अपनी जोशीली निराधार बातों से अच्छे खासे इंसान को उद्वेलित करने की क्षमता रखता है, बौनों की तो बिसात ही क्या। गुलीवर ने बौनों को उन्हीं की भाषा में विश्वास दिलाया है कि ईश्वर ने उसे बौनों की रक्षा के लिये ही भेजा है। वही है जो बौनों का विकास कर उन्हें आदमकद इंसान बना सकता है। उसने बौनों के मन की बात जान ली है।
गुलीवर ने बौनों के साथ कुछ देर की बातचीत से ये भी जान लिया कि बौनों की सत्ता ने उन्हें अपनी सुविधा के लिये कई तरह के बौनों में बाँट रखा है। गोरे बौने, काले बौने, भूरे बौने, लंबे बौने, छोटे बौने, पतले बौने, मोटे बौने, बुद्धि जीवी बौने, भक्ति जीवी बौने। बौनों का ये आपसी अंतर्विरोध सत्ता परिवर्तन के भाव को जन्म तो दे रहा है लेकिन आपसी एकता के अभाव ने कोई ठोस विकल्प बनने ही नहीं दिया। अब गुलीवर जैसे ऊँचे विकल्प को सामने देख बौनी प्रजा के अच्छे दिनों के सपनों को जैसे उतने ही बड़े पंख लग गये। वो चाहते तो हैं व्यवस्था परिवर्तन लेकिन फिलहाल सत्ता परिवर्तन की रौ में बह गये।
टापू पर अब गुलीवर का राज हो चुका है और बौनों की सत्ता पदच्युत हो चुकी है। गुलीवर ने सबसे पहले टापू पर जगह जगह ऊँचाई नापने वाले यंत्र लगाकर बौनी प्रजा को मंत्र मुग्ध कर दिया। गुलीवर ने पौष्टिक आहार और दो वक़्त की रोजी रोटी मांग रहे बौनों को योग का मंत्र दिया। विकास की दर बढ़ाने के लिये उपवास पर जोर दिया जाने लगा। वैद्यों की कमी को दूर करने के लिये गणेश जी पर की गयी सर्जरी को आधार बना कर मरीजों से भगवत भजन करने को कहा गया ताकि परंपरागत चिकित्सा पद्धति फले फूले और लाइलाज लोग सीधे मोक्ष की प्राप्ति कर सकें।
गुलीवर ने रोजगार देने के लिये अपनी निजी सेना बनायी जिसमें भक्तिजीवी बौनों को प्रमुखता से भर्ती किया गया। बौनों को बताया गया कि गुलीवर से निकटता उनके विकास में और तेजी लायेगी। इस सोशल सेना का काम टापू की सीमाओं पर नहीं बल्कि बुद्धि जीवी बौनों पर पहरा देने का है। हालांकि बुद्धिजीवियों को पिछली सत्ता में भी ऐसे ही पहरे की आदत थी लेकिन अब तो छिप छिप कर उनके घर पर ट्रोलिंग के पत्थर भी फेंके जाने लगे हैं। उनका कुसूर इतना है कि वो गुलीवर की सत्ता में सकारात्मक चारित्रिक बदलाव देखना चाहते हैं। वो महसूस कर रहे हैं चरित्र के उत्थान और पतन के वास्तविक अंतर को।
गुलीवर के लंबे कद का भ्रम बौनी प्रजा पर कायम रहे, इसके लिये उसने उनके ही कई नेताओं की विशालकाय प्रतिमाएँ बनाईं और बौनों को यकीन दिलवाया कि विकास इसी को कहते हैं। गुलीवर ने छोटे बौनों को अहसास दिलाया कि उसके हिस्से का विकास लंबे बौने खा रहे हैं और उसी तरह हर तबके को दूसरे के खिलाफ़ भड़का दिया। टापू पर बौनों के बीच अराजकता का माहौल बढ़ता ही जा रहा है। गुलीवर जहां एक ओर निजी तौर पर इसे बढ़ावा देता वहीं पूर्ववर्ती बौनों की सरकार को विकास विरोधी बताते हुए इसके लिये ज़िम्मेदार ठहरा देता। सत्ता गुलीवर के पास है लेकिन सवाल पूर्ववर्ती सरकार से पूछे जाते। बौने भ्रमित हैं कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, सब एकाकार जो हो चुका है। ऐसे में गुलीवर का ये कहना कि वो किसके लिये झूठ बोलेगा, उसका तो कोई भी नहीं, बौनों के दिमाग में भक्ति रस के प्रवाह को और भी तेज कर देता है।
सत्ता च्युत हो चुकी बौनी सत्ता के प्रतिनिधियों को अब तक यही बात सालती रही है कि गुलीवर को अपने लंबे कद पर बहुत घमंड है। गुलीवर जब उनके कद को भ्रष्टाचार की देन बताता तो ये कसक और बढ़ जाती। उनके नेता को बच्चा समझ कर ऊंचे कद के गुलीवर ने कभी उन पर ठीक से नजर तक नहीं डाली, आख़िर हिकारत की भी हाइट होती है। माना कि लंबे समय तक सत्ता में रहने से उनका कद कुछ घिस गया है लेकिन गुलीवर भी तो लोगों को लंबे कद की गाजर ही दिखा रहा है। जबकि सच तो यही है कि अच्छे पोषण से सत्ता के कुछ करीबी बौनों के ही घर ऊँचे हुए हैं। विरोधी बौनों ने अपनी बौनी प्रजा को कई बार गुलीवर का सच बताने की कोशिश की लेकिन वो तो उसे ही सच मानकर बैठे हैं।
और फिर एक दिन…. गुलीवर बौनी प्रजा को संबोधित करने खुले मैदान में आता है और अचानक कमर तक रेत में धंस जाता है। वैसे तो किसी भी मुश्किल से पार पाना गुलीवर के बाएं हाथ का काम है लेकिन रेत में धंस कर उसके भी तोते उड़े हुए हैं। दाहिना हाथ खुद को बचाने में जुटा है। दरअसल गलती से गुलीवर उसी कमजोर सुरंग के ऊपर खड़ा हो गया जो उसके महल से एक बौने धनपति के बंगले तक जाती है। अब विरोधियों को इस बात का सुकून है कि वो गुलीवर की आँखों में आँखें डाल कर भ्रष्टाचार पर सवाल पूछ पाएंगे और वो निगाहें भी नहीं चुरा पाएगा। बौनी भक्तजीवी जनता को भरोसा है कि रेत में धंस कर फिलहाल खुद बौना हो चुका गुलीवर अपनी ताकत से फिर बाहर निकल आयेगा और उनका विकास करेगा। बुद्धि जीवी बौने हमेशा की तरह व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद भरी पटकथा लिख रहे हैं। पास पड़े पैंतरों के झोले की ओर देखते हुए गुलीवर इस दफ़ा मन ही मन सोच रहा है कि एक बार बाहर निकल आऊं, फिर बताता हूं सबको…।
@भूपेश पंत