• Fri. Apr 19th, 2024

सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

चल भगोड़े अब कर नाटक!

Byआज़ाद

Mar 30, 2023

बॉस का चापलूस कर्मचारी भागते हुए ऑफिस में घुसा,

“सर आज तो आपको मुझे 15 लाख का इनाम देना ही होगा तभी मैं मानूँगा आपकी 56 इंची छाती को।”

“क्यों बे… ऐसा क्या कर दिया तूने जो इतना उछल रहा है!”…. बॉस चीते की तरह गुर्राया।

“बॉssस! आज मैने उस बन्दे की बैंड बजा दी जो हमेशा आपका मज़ाक उड़ाता रहता है। मैने उसे जेल भिजवा दिया और नौकरी से भी निकलवा दिया।”

बॉस कुर्सी को जोर से पकड़ते हुए…., “अबे हो क्या गया पूरी बात तो बता!”

“वही तो बॉस, समझ रहा था हम लोग बेवकूफ़ हैं। हमें उल्लू बनाने चला था।”

“गोल गोल मत घूम। ये बता उसने किया क्या?” बॉस का सब्र जवाब दे रहा था।

“सुनिए, क्या हुआ आज वो सामने वाले बस अड्डे पर एक तख्ती लिये खड़ा था जिसमें लिखा था, चल भगोड़े अब कर नाटक। मैं समझ गया कि आज ये फ़िर सबके सामने आपका मज़ाक उड़ा रहा है।”

“अबे… तुझे कैसे पता चला कि वो मेरी ही बात कर रहा था?” बॉस के दोनों हाथ एजेंसियों की तरह कर्मचारी की गर्दन पर कस चुके थे।

“क्यों सर! क्या हम ऑफिस के लोग आपको जानते नहीं?”

“अबे…… लेकिन जो तुम लोग ही जानते हो वो पूरी दुनिया को क्यों बता दिया! उसने कहीं मेरा नाम लिखा था क्या गधे?”

“सर, ये तो बहुत बड़ा गलती हो गया हमसे। अब क्या करें?” चापलूस रिरियाया।

बॉस उसका गिरेबाँ सहलाते हुए, “वो मैं कुछ निकालता हूँ एक्सट्रा 2ab इस मामले में भी। फ़िलहाल तू नाले वाले से दो चाय बोल के आ फटाफट।”

“ठीक है बॉस पर जाने से पहले एक बात बोलूँ?”

“एक नहीं दो बोल…”

“बॉस आप तो ये बात समझ गये लेकिन वो नहीं समझ पा रहा है।”

“अबे ऐसा बोल कर मरवाएगा क्या?”

“यानी आप समझ गए, मैं किसकी बात कर रहा हूँ?”

“क्यों, क्या मैं नहीं जानता कि यहाँ अनपढ़ कौन है?”

बॉस और चापलूस कर्मचारी एक दूसरे को देख कर ज़ोर से ठहाके लगाते हैं।

दर्शकों की तालियों के बीच नाटक का पर्दा गिरता है और उद्घोषणा होती है कि नाटक के सभी पात्र काल्पनिक हैं। किसी से उसकी समानता को महज संयोग माना जाय। इसके बाद फ़िर ज़ोरदार ठहाके लगते हैं।

 

@भूपेश पन्त

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *