तेरे हक़ में
कुछ
बेहद मामूली
और
मेरे हक़ में
हर बड़ा फ़ैसला आना है
जब
इंसाफ़ खुद
सत्ता की तान पर
डोल रहा है
तो
किस कमबख़्त को
उसका
घंटा बजाना है।
तुझे
तो बस
झटपट न्याय
की
पड़ी है
उन्हें तो बाद में
सालों तक
चली बहसों और
अपराध की स्वीकारोक्ति
के बाद
सुबूतों के अभाव में
बरी
किये गये
इंसाफ़
का
ईनाम लेने भी जाना है।
तू
चाहता है
आँख मूँद कर
वो
कर ले तेरी
हर
दलील पर भरोसा
जबकि
गवाह और सुबूत
चीख चीख
कर कह रहे हैं
कि
गुनहगार को
बस
कपड़ों से पहचाना जाना है।
रे मूर्ख
सुन और समझ
सृष्टि का
बनना बिगड़ना
तय है
सूरज डूबना
चाँद
का निकलना
और
फूल का खिलना
तय है
क़ानून तय है
इंसाफ़ तय है
मेरी सत्ता तय है
तुम्हारा भविष्य तय है
और
जो कुछ रह गया
तय है
कल वो भी बिक ही जाना है।
सुना था
किसी मुगल जहाँगीर ने
फ़रियादी के लिये
इंसाफ़ का
घंटा था लगवाया
लेकिन
मैंने तो इंसाफ़
को
मिनटों का काम बनाया
भीड़ अदालतों
का गठन दरअसल
पंचों का काम
आसान बनाना है
ये तेरी
खुशक़िस्मती है
कि
मेरे हाथों
क़त्ल होने के बाद
तुझे
घंटा बजाने
मेरे पास ही आना है।
@भूपेश पन्त