(पहली किस्त)
पत्रकार – साहब आप चीन का नाम क्यों नहीं लेते?
बुड़बक – क्योंकि हमने उसका बहिष्कार किया है।
पत्रकार – साहब आप उसे लाल लाल आँखें क्यों नहीं दिखाते?
बुड़बक – अरे, क्योंकि वो कम्युनिस्ट देश है उसे लाल रंग सूट करता है।
पत्रकार – तो फिर आपने झुल्लेलाल के साथ दोस्ती की पींगें क्यों बढ़ाईं?
बुड़बक – हमने तो नेहरू जी के भाईचारे को ही आगे बढ़ाया है।
पत्रकार – लेकिन तब हमें धोखा खाना पड़ा था, वही गलती फिर क्यों की?
बुड़बक – ये सवाल तुम्हें नेहरू ख़ानदान से पूछना चाहिए। रही बात धोखे की तो मेरे खून में व्यापार है। खाया ही तो है ना आखिर खिलाया तो नहीं। घाटे का कोई काम मैं नहीं करता।
पत्रकार – तो फिर झुल्लेलाल को बुला कर उसकी आवभगत करने की ज़रुरत क्या थी?
बुड़बक – नहीं नहीं उसे कोई नहीं बुलाता है वो खुद ही घुस आता है कभी भी कहीं भी। अब जैसा भी है, अतिथि तो है ना। वो हमारे लिए देवतुल्य है इसलिए सेवा तो करनी पड़ती है।
पत्रकार – तो फिर इतनी बड़ी मूर्ति का ठेका उसे देने की क्या ज़रूरत थी?
बुड़बक – ज़रूरत क्या और किसे थी इसका जवाब तो नहीं दूँगा लेकिन क्यों थी ये बता देता हूँ। ऐसा करके हमने उन्हें अहसास कराया कि भुखमरी, कर्ज़दारी और पिछड़ेपन के बाद भी हम एकता के नाम पर कितना पैसा लुटा सकते हैं। इससे आर्थिक महाशक्ति होने के उसके घमंड की दीवार चूर चूर हो गयी।
पत्रकार – और वो देशभक्ति?
बुड़बक – लोग जब देश को लुटाने की हद तक मेरी भक्ति कर रहे हैं तो कुछ गद्दारों को मिर्च लग रही है। अरे यही तो देशभक्ति है इसमें कुछ कमी दिख रही हो तो बताओ। बस अब और सवाल नहीं, झुल्लेलाल से हमारी दोस्ती बनी रहे बस।
(नेपथ्य से वाह! वाह! की आवाज़)
नोट- उम्मीद है कि “प्रेस कांफ्रेंस” पढ़ कर ही आप समझ गये होंगे कि ये सब काल्पनिक है। सिवाय भक्तों की वाह वाह के।
@भूपेश पन्त