बुड़बक पढ़ रहा था,
“राम नाम का उपदेश वाल्मीकि को सप्तर्षियों ने दिया, और उसका उल्टा मरा मरा का जाप कर आदि-कवि ब्रह्मर्षि वाल्मीकि बन गए और ब्रह्म के समान हो गये। उन्होंने किरात जीवन का त्याग कर परम मनोहर श्रीमद रामायण महाकाव्य की रचना की।
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट कहा है : – जान “आदिकबि” नाम प्रतापू । भयउ “सुद्ध” करि “उलटा जापू” ॥
‘जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥श्री रामचरितमानस १.१९.३॥’
शुरुआत की दो पंक्तियों का भावार्थ है कि आदिकवि श्री वाल्मीकि जी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम (‘मरा’, ‘मरा’) जपकर पवित्र हो गए।”
इतना पढ़ कर बुड़बक उछल पड़ा। उसकी समझ में आ गया कि देश में रामराज्य लाने का सबसे आसान मंत्र कौन सा है। उसने तुरंत अपने खास सलाहकार यानी शाहकार को वीडियो कॉल लगाया जो बीमार हो कर घर बैठा था।
खुर्र.. खुर्र.. खुर्राट शाहकार स्क्रीन पर अवतरित हुआ और उबासी लेते हुए बोला –
‘मोटा भाई ये क्या बात हुई आप आराम भी नहीं करने देते!’
बुड़बक – ‘मैं जानता हूँ तेरे आराम की करोनालॉजी। तू ज़रूर कहीं किसी राज्य की सत्ता तक सुरंग खोद रहा होगा।’
शाहकार (खीसें निपोरते हुए) – ‘ही.. ही.. ही.. आप तो मेरे ही मन की बात जानते हो मोटा भाई और उसे ही आकाशवाणी की तरह दोहरा के आ जाते हो। लेकिन आपकी कुछ बातें हमेशा मौलिक और सांकेतिक होती हैं। जैसे नदी में मगरमच्छ का बच्चा पकड़ना, प्रेस कांफ्रेंस में सवालों को मेरी तरफ़ सरका कर आएं दायें देख कर फोटो खिंचाना, संत कबीर, गुरु नानक और गोरखनाथ को मिलाना, आम चूस कर खाना आदि आदि।’
बुड़बक – ‘अरे तुम मेरी मौलिकता क्या जानो! कई ऐसी खास बातें हैं जो मैंने किसी को बतायी ही नहीं हैं। तुम्हें पता है कि लव और कुश बचपन में मेरे साथ तीरंदाज़ी सीखते थे। मैं उनका निशाना होता और देश वासियों के सौभाग्य से वो अक्सर निशाना चूक जाते। वो तो मुझे मेरे नाम राशि स्वामी विवेकानंद ने समझाया कि इन लड़ाकू बच्चों के चक्कर में मत पड़ो और अपना ही कुछ चक्कर चलाओ। तुम्हें आने वाले समय में गाँधी जी के बाद उनकी राम राज्य की कल्पना को अयोध्या में उतारना भी है।’
शाहकार (हैरानी से) – ‘फिर आपने क्या किया मोटा भाई?’
बुड़बक – ‘मैंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन से इंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री ली जिसमें मैंने चाणक्य, वाल्मीकि और तुलसीदास को पढ़ा। तब से मैं अर्थशास्त्र, कूटनीति, राम और इनकी सामूहिक शक्ति को जान गया।’
शाहकार (उबासी लेते हुए) – ‘क्या यही सब बताने के लिये आपने मुझे नींद से जगाया था मोटा भाई?’
बुड़बक – ‘अरे नहीं, तुमने अच्छा याद दिलाया। मैंने रामराज्य को साकार करने का मंत्र जान लिया है। अब हम देश में राम और राज्य दोनों ला कर रहेंगे।’
‘लेकिन रामराज्य तो एक शब्द है ना’, शाहकार बोला।
बुड़बक – ‘अरे वो बाकी सब के लिये है, हमारे लिये नहीं। हम जानते हैं कि चौदह वर्ष का बनवास बिताने वाले राम को राज्य की ज़रूरत नहीं है। लेकिन बाबा मलूकदास के मुताबिक हमें तो उनके नाम का ही सहारा है। नाम उनका और राजकाज अपना।’
शाहकार – ‘लेकिन राज्य के सभी लोग राम नाम का जाप क्यों करने लगे? अब उन्हें पढ़ा लिखा कर रामायण और रामचरित मानस पढ़ाओगे क्या।’
बुड़बक – ‘अरे नहीं, हमें बस इन बेवकूफ़ों की हालत ऐसी कर देनी है कि जनता मरा मरा चिल्लाने लगे। जब छह सौ करोड़ देशवासी मरा मरा की आवाज़ लगाएंगे तो वो वाल्मीकि हो जाएंगे और देश राममय हो जाएगा। ऐसे में सेक्युलर लिब्रांडु भी हम पर सांप्रदायिक होने का आरोप नहीं लगा पाएंगे और गाँधीजी का सपना भी सच हो जाएगा। उनका हे राम मेरे नाथूराम से गले मिल कर खुशियां मनाएगा।’
शाहकार – ‘वो दिन ज़रूर आयेगा मोटा भाई… जब सब मिल कर ज़ोर से बोलेंगे राम नाम… ‘
बुड़बक – ‘अरे नहीं सब मिल कर बोलेंगे… मरा मरा। रामराज्य का ये रूप मुझे अभी से अत्यंत आनंद की अनुभूति करा रहा है।’
शाहकार – ‘अब कॉल काटिये मोटा भाई मेरे घर आज डिनर पर रावण आ रहा है। शूर्पणखा को प्लास्टिक सर्जरी के बाद चैनल की एंकर रखवाना है। मेघनाद को छात्र संघ का चुनाव जिताना है और कुंभकर्ण को प्रशासन की कमान सौंपनी है। झूठ और सच के बीच की लक्ष्मण रेखा मिटानी है और विभीषणों को पार्टी में ला कर विरोधियों की सरकार गिरानी है। इतना आसान थोड़ी है रामराज्य लाना।’
बुड़बक – ‘सही कह रहे हो, अठारह अठारह घंटे रोज इसी काम में निकल रहे हैं। एक बार ये काम पूरा हो जाए तो मैं भी झोला उठा कर निकल लूँ।’
शाहकार – ‘कहां… हिमालय?’
बुड़बक – ‘नहीं… विदेश।’