मौजूदा लोकतांत्रिक तानाशाही के मुताबिक उसे जनता ने चुन कर बहुमत से जिताया है इसलिये वो जो भी कर रही है उसमें जनता की मंशा स्वतः शामिल है। लिहाज़ा उसके किसी भी अंग के किसी भी कृत्य पर संसद से लेकर सड़क तक कहीं भी सवाल उठाना उस जनता का अपमान है। जवाब में विपक्ष अब तक ये नेरेटिव नहीं बना पाया कि उसके पीछे भी देश की एक कहीं बड़ी आबादी के सरोकार हैं, उनका समर्थन है। क्या विपक्ष का अपने ही नागरिकों की चेतना से भरोसा उठ चुका है या सत्ता को अपने अल्पज्ञानी लेकिन मुखर समर्थकों की अचेतन अवस्था पर लेश मात्र भी संदेह नहीं?
बहरहाल कुछ सवाल तो इस लोकतांत्रिक तानाशाही के समर्थकों से पूछे ही जाने चाहिये कि क्या उन्होंने मौजूदा सत्ता को वोट देकर –
1. बलात्कार, यौन उत्पीड़न को अपना समर्थन दिया है
2. बेरोजगारी को अपना समर्थन दिया है
3. महँगाई को अपना समर्थन दिया है
4. धार्मिक और जातीय विभाजन को अपना समर्थन दिया है
5. संविधान की धज्जियाँ उड़ाने को अपना समर्थन दिया है
6. न्याय की गुहार लगाने के विरुद्ध अपना समर्थन दिया है
7. लोकतंत्र का मखौल उड़ाने के लिये समर्थन दिया है
8. विपक्ष की आवाज़ दबाने के लिये समर्थन दिया है
9. गली गली में गुंडों की फ़ौज खड़ी करने को समर्थन दिया है
10. हत्यारों, बलात्कारियों, पाखंडियों, लुच्चों, भ्रष्टाचारियों, झूठों और अफवाह बाजों को संरक्षण देने के लिये समर्थन दिया है
11. देश का भविष्य बर्बाद करने के लिये समर्थन दिया है
12. भीख में 5 किलो राशन पाने के लिये समर्थन दिया है
13. कुछ अमीरों को और अमीर बनाने के लिये समर्थन दिया है
14. अपने साथ साथ देश की आज़ादी को गिरवी रखने के लिये समर्थन दिया है
15. अपनी मानसिकता के अनुरूप कुंठित, बीमार और संवेदनहीन सरकार बनाने के लिये समर्थन दिया है
16. सिस्टम को सड़ा गला कर उसकी सड़ांध से मिलते उन्माद के नशे में झूमने के लिये समर्थन दिया है
17. सम्मान के साथ जीने के अधिकार को खोने के लिये समर्थन दिया है
18. अपने विशिष्ट नागरिक बोध के लालच में समर्थन दिया है
19. अपने निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर समर्थन दिया है
एक बात और, क्या इनमें से किसी एक भी नकारात्मकता की ज़द में आने से ये समर्थक कल ख़ुद को और अपने परिवार को बचा पायेंगे? क्योंकि जिस लोकतांत्रिक तानाशाही को उन्होंने चुना है वो तो कल को उनके ही समर्थन का दावा कर उनका ही गला भी दबा सकती है। वैसे भी मतदान तो गुप्त होता है और निरंकुशता दूसरों को कुचलने के बाद अपनों को भी नहीं बख़्शती, आदतन। याद रहे कि तुम्हारी नीयत ही तुम्हारी नियति को भी तय करेगी। जो सरकार आज तुम्हारे वोटों की आड़ में छुप कर लोकतंत्र पर वार कर रही है वो दरअसल तुम्हारी ही जड़ों पर प्रहार कर रही है। जब तक तुम उस दर्द को महसूस करोगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
जय लोकतंत्र, जय संविधान, जय नागरिक, जय हिन्द।