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सटायर हिन्दी

विद्रूपताओं का आईना

मायूसी का नतीज़ा!

Byआज़ाद

Dec 4, 2023

संविधान, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को ख़तरे में देख रहे कई लोग एक पड़ाव में मात खाकर आज मायूस हैं। उनमें मैं भी हूँ। लेकिन मैं हमेशा से मानता रहा हूँ कि ठोकरें खाना इंसान की फ़ितरत है। यही ठोकरें उनमें सँभलने की आदत पैदा करती है। जो वक़्त रहते नहीं सँभलते उन्हें मुँह की खानी पड़ती है। जो संभल जाता है उसे फ़िर ना तो ठोकरें खाने को मिलती है और ना मुँह की। खाने से याद आया कि विचारों की भूख 5 किलो राशन से नहीं मिटती है। बल्कि शारीरिक भूख इतनी बढ़ जाती है कि कई पीढ़ियों का भविष्य निगल सकती है।

जीवन में एक बात मैंने सीखी है कि ज्ञान कहीं से भी मिले उसे चुरा लेना चाहिए। जब तक मैं किताबों को ज्ञान समझता रहा उन्हें चुराता रहा। इस दौरान चोर को कई मोर भी मिले। मेरे कई मित्र इसे पढ़ कर मुस्कुराएंगे ज़रुर। दरअसल हमें पता ही नहीं चलता कि जो भी हरक़त हम करते हैं उसे दुनिया में उसी वक़्त कई और लोग कर रहे होते हैं। वोट देते वक़्त भी यही एक एक वोट जो सामुहिकता में किसी को पड़ता है वो व्यक्तिगत के साथ एक सामुहिक भविष्य का भी निर्माण करता है। ये राजनीतिक बारीकी आम आदमी की समझ को भ्रमित कर देती है और जब सबकी चुनावी गारंटी एक समान हो जाती है तो वो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार जैसे मामूली मुद्दों में न उलझ कर वहीं लौट जाता है जहाँ सरकार के साथ साथ नागरिक के तौर पर उसकी भी कोई जवाबदेही ना हो।

जब पेट भरे हों तो भूखे पेट सोने वालों की व्यथा जानी तो जा सकती है, महसूस नहीं की जा सकती। उसी तरह ये भी सच है कि जब जान पर बनी हो तो इंसान रोटी की तरफ़ देखता है, खजूर की तरफ़ नहीं। तो अब ज्ञान पेलने से वापस ज्ञान चुराने के मूल विषय की तरफ लौटते हैं। मैंने बचपन में एक कहानी सुनी थी कि जब लंका विजय अभियान पर निकले राजा की राह में समुद्र आ गया तो उन्होंने तमाम एजेंसियों की मदद से उसके धन बल को सुखा देने की धमकी दे डाली। वो धमकी असर भी कर गई। लेकिन इसी बीच राजा की नज़र अपने एक गिलहरी नुमा भक्त पर पड़ी जो अपनी सामर्थ्य के मुताबिक शरीर पर रेत नुमा वोट बटोर कर समुद्र तट पर झाड़ रहा था। पारितोषिक स्वरूप महामानव राजा ने उस भक्त की पीठ पर हर तरह के अपराध से संरक्षण का हाथ फेरा। तभी से गिलहरी की पीठ पर शाखा नुमा निशान हैं। शाखाएँ ही उनकी पहचान हैं और राजा की असली ताक़त भी वही हैं।

 

लब्बोलुआब ये है कि वाइल्ड लाइफ चैनल्स आपको गिलहरी के बारे में जो बताएं उस पर भरोसा करने से पहले ये देख लें कि कहीं वो आपको उन चूहों के बारे में तो नहीं बता रहे जो (आपकी) ज़मीन के नीचे बहुत ज़ल्दी एक सुरंग तैयार कर सकते हैं। उस सुरंग की समय रहते पहचान करनी होगी ताकि अवसर रहते आपदा से बचा जा सके। गिलहरी के निर्विकार श्रम से सीखना होगा कि लगातार अभ्यास से ज़मीनी स्तर पर बड़े बदलाव के निशान बनाये जा सकते हैं।

इसलिये क्षणिक सुख से वंचित हो कर ये न भूल जायें कि सुखद भविष्य का निर्माण वर्तमान की अस्थि मज्जा, आँसू, स्वेद और रक्त से ही होना है। सोचना ये है कि आप इसमें अपना योगदान स्वेच्छा से करना चाहते हैं या ख़ुद को हालात के हाथों नर पिशाचों के भोग का सामान बनते देखना चाहते हैं। मायूस होकर कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेने से कुछ नहीं होगा क्योंकि सियासत की बिल्ली बिग बॉस की तरह हर वक़्त हम सबको घूर रही है। वो कहते हैं ना कि जब मौत सिर पर मंडरा रही हो तो आँखें मूँदने की बजाय उसकी आँखों में आँखें डालकर पूरी ताक़त से भिड़ जाना चाहिए। आपकी आने वाली पीढ़ियां एक गरिमामय भविष्य के लिये आपकी कर्जदार रहेंगी।

मेरी ये प्रस्तावना आपको पसंद आयी हो या नहीं लेकिन ऐसे समय में संविधान की प्रस्तावना को बार बार पढ़ें और अपने इर्द-गिर्द नागरिक अधिकारों और कर्त्तव्यों का सुरक्षा कवच बनायें। सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह और बहिष्कार जैसे अचूक हथियारों को विचारों की सान पर तेज़ करें और मूर्खता के महल के नीचे इतनी सुरंगें खोद डालें कि उसके अवशेषों पर एक स्वस्थ, सजग, विचारवान और लोकतांत्रिक समाज निखर सके।

 

 

 

 

 

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