आज रास्ते में एक भक्त मिला। उसके चेहरे पर चार सौ पार की बनावटी मुस्कान तो थी लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के रहस्योद्घाटन को लेकर शर्मिंदगी का लेशमात्र भाव न था।
मैंने पूछ लिया, क्या भाई! चंदे से बहुत कमा रहे हो आजकल।
बोला, हाँ तो! सबने लिया है।
मैंने कहा, लेकिन चंदे के बदले धंधा तो तुम ही दे सकते थे। धमकाना भी तुम्हारे बांये हाथ का खेल है। पार्टी को गैंग और सरकारी कामकाज को माफ़िया राज की तरह चला रहे हो तुम।
बोला, तो अगर हम इतना ग़लत कर रहे थे तो विपक्ष बोला क्यों नहीं, विरोध क्यों नहीं किया? क्या उसे चुप रहने के लिए चंदा मिला था।
मैंने कहा, लेकिन जनता तुम्हारे बरगलाने में इस बार नहीं आने वाली। वो इस बार तुम्हारे इस संस्थागत फिरौती नुमा भ्रष्टाचार के विरोध में वोट देगी।
मेरी इस बात पर वो भक्त पहले तो ठठा कर हँसा फ़िर बोला, कौन सी जनता जय श्रीराम वाली, पाँच किलो मुफ़्त अनाज वाली या पकौड़े तल कर हमें जिताने वाली। इसके अलावा तुम्हारी जनता के पास तुम्हारी आवाज़ पहुँच ही कहाँ रही है।
मैंने कहा, लेकिन सोशल मीडिया तो है।
भक्त के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गयी। बोला, पैसे वालों ने इस मीडिया को भी कमाई का ज़रिया बना दिया है। अब इनका एक स्वर में बोलना मुश्किल है।
मैंने कहा, लेकिन गोदी मीडिया की तरह तुम्हारा दाँव यहाँ नहीं चलेगा। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिये सभी लोग एकजुट हैं।
वो छूटते ही बोला, किसके भरोसे? उस बिचारी जनता के जो अब तक इलेक्टोरल का मतलब भी नहीं जानती। उसके लिये ये तो दस्त के दौरान डिहाइड्रेशन रोकने की दवाई भी हो सकती है। ख़ुद मैं भी यही समझ रहा था अभी तक।
मैंने चिल्ला कर कहा, अबे उसे इलेक्ट्राॅल कहते हैं जिसे पिलाया जाता है।
भक्त, ये तो तुम जैसे बुद्धिजीवी जानते हैं या हम जैसे लोग। वैसे पिलाया तो नफ़रत को जाता है धर्म की अफीम की तरह। उसके आगे ये सब फेल।
मैं ज़वाब देने लगा कि, हम भारत के लोग…
वो तुरंत वहाँ से मुँह बनाकर खिसक लिया। शायद उसे लगा हो कि मैं उसे संविधान की प्रस्तावना सुना रहा हूँ। क्या पता?